पहलगाम आतंकी हमला 2025

      अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में अब तक 26 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 40 से अधिक घायल हुए हैं। घायलों में से कई की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस हमले ने न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, बल्कि चिकित्सा आपातकालीन सेवाओं की तत्परता को भी बड़ी चुनौती दी।



हमले की प्रकृति और घायलों की स्थिति


हमला घातक था — आतंकवादियों ने पहले ग्रेनेड से हमला किया और फिर अंधाधुंध गोलीबारी की। घायलों को जो चोटें आईं, वे मुख्यतः विस्फोटकों के टुकड़े लगने, गोलियों के घाव, और भगदड़ के दौरान लगी चोटों क


लगभग 60% घायलों को ब्लास्ट इंजरी (Blast injuries) हुईं।


25% को गनशॉट वुंड्स (Gunshot wounds) थे।


बाकी को भगदड़ के कारण फ्रैक्चर, सिर में चोटें और आंतरिक रक्तस्राव (Internal bleeding) जैसी समस्याएं थीं।





हमले के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना के विशेष दस्तों ने इलाके को घेरा। घायलों को तेजी से पास के स्वास्थ्य केंद्रों और फिर बड़े अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया।

मुख्य अस्पताल जिनमें घायलों को भर्ती किया गया:


अनंतनाग जिला अस्पताल


शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS


ट्राइएज सिस्टम लागू किया गया:

सबसे गंभीर घायलों को प्राथमिकता दी गई।


ब्लड बैंक सक्रिय:

अचानक बढ़ी रक्त की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कई ब्लड डोनेशन ड्राइव आयोजित की गईं। विशेषकर O-negative ब्लड ग्रुप की मांग अधिक रही।


सर्जरी और इमरजेंसी केसेस:

कई घायलों को आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता थी। ऑर्थोपेडिक्स, न्यूरोसर्जन्स और ट्रॉमा सर्जन्स की अलग-अलग टीमें बनाई गईं।


इस हमले ने घायलों और उनके परिवारों पर गहरा मानसिक प्रभाव डाला है। PTSD (Post Traumatic Stress Disorder) के खतरे को देखते हुए, मनोचिकित्सकों की टीमें भी तैनात की गई


1. बुनियादी ढांचे पर दबाव


पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों पर मेडिकल सुविधाएं सीमित हैं। शुरूआती घायलों को स्थिर करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भारी दबाव पड़ा। वहां से रेफर करने में भी समय लगा, जिससे कुछ मरीजों की हालत बिग


पहलगाम एक दुर्गम इलाका है। एयरलिफ्टिंग के लिए हेलीकॉप्टरों का इंतज़ाम करना चुनौतीपूर्ण रहा। बाद में सेना के MI-17 हेलीकॉप्टरों और एयरफोर्स के Cheetah चॉपरों की मदद से गंभीर घायलों को श्रीनगर पहुँचाया गया।


ब्लास्ट इंजरीज़ और खुले घावों में संक्रमण का खतरा अत्यधिक होता है। डॉक्टर्स ने तुरंत एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट शुरू किया। फिर भी कुछ मामलों में सर्जिकल डेब्रिडमेंट (घाव से मलबा हटाने) की आवश्यकता पड़ी।



घायल बच्चों और महिलाओं में ट्रॉमा के लक्षण तेजी से सामने आए। PTSD, डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी स्थितियाँ देखी गईं। जम्मू-कश्मीर हेल्थ डिपार्टमेंट ने विशेष काउंसलिंग सत्र शुरू किए हैं।


सरकारी और निजी संस्थाओं की भूमिका


केंद्र सरकार ने तुरंत 10 करोड़ रुपये के मेडिकल राहत पैकेज की घोषणा की।


ICMR (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) ने मेडिकल टीमों को गाइडलाइंस जारी कीं कि कैसे हमले के बाद संक्रमण और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को नियंत्रित किया जाए।


कई एनजीओ जैसे Doctors Without Borders और Red Cross India ने भी इमरजेंसी सपोर्ट भेजा।


AIIMS दिल्ली से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम को भी भेजा गया।


आगे का रास्ता


घायलों का इलाज अभी भी जारी है। कई मरीजों को लम्बे समय तक भौतिक चिकित्सा (Physiotherapy) और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होगी। इस घटना ने दिखा दिया है कि पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों में भविष्य में आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं को और अधिक सशक्त करना अनिवार्य है


स्थायी ट्रॉमा केयर सेंटर का निर्माण।


मोबाइल मेडिकल यूनिट्स की उपलब्धता।


मेडिकल स्टाफ के लिए आपदा प्रतिक्रिया प्रशिक्


पहलगाम हमला न केवल एक सुरक्षा विफलता थी, बल्कि यह भी दिखाता है कि चिकित्सा तंत्र को आतंकवादी हमलों जैसे बड़े आपदाओं के लिए और बेहतर तैयार रहने की आवश्यकता है। इस हमले में घायल हुए लोग न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी गहरे जख्म झेल रहे हैं। ऐसे में उनकी दीर्घकालीन चिकित्सा और पुनर्वास पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है।


भारत के चिकित्सा पेशेवरों ने इस संकट के समय अपने समर्पण और कुशलता का जो परिचय दिया है, वह अत्यंत सराहनीय है। अब सरकार और समाज का कर्तव्य है कि वह घायलों के इलाज और पुनर्स्थापन में हर संभव सहायता 



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