Janglon Ko Kyon Jalaya Ja Raha Hai?"जंगल की आग और इंसान की गलती"


 जंगलों की आग का सफर सिर्फ एक प्राकृतिक घाटा नहीं है;  ये एक बहुत बड़े सामाजिक और महोलती मुद्दे का हिसा है।  जंगलों को जलाने का काफी बड़ा कारण है, जो आम तौर पर इंसानियत के हाथ से जुदा है।  आज के दौर में जंगलों की आग न सिर्फ प्राकृतिक रूप से, बल्कि इंसानी गलतियाँ और उनके लापरवाही से भी हो रही है।



 कहानी 1: "जंगल की आग और इंसान की गलती"


 रवि एक युवा प्रदेशिक था, जो अपने शहर के पास के जंगल में रहने वाले लोगों से जुड़ा हुआ था।  उसका शहर एक ख़ूबसूरत और समृद्ध प्रांतीय जंगलों से घिरा हुआ था।  रवि को ये जंगलों से गहरा लगाव था।  उसने जिंदगी के पहले कुछ साल जंगलों के विचार और प्राकृतिक जीवन को समझने में बिताए थे।



 एक दिन, रवि ने देखा कि लोग जंगल की तलाश कर रहे थे और उसमें आग लगा रहे थे।  अन्होने कहा, "ये तो काफ़ी पुरानी तारीख़ है, हम जंगल को जलाकर ज़मीन ख़त्म कर रहे हैं।"  रवि ने पूछा, "लेकिन ये कैसे सही है? आप ये प्राकृतिक संतुलन को तोड़ रहे हैं!"


 लोगों ने जवाब दिया, "जंगल के पेड़ों और जानवरों को मारना और ज़मीन पर किसान की खेती करना हमारी जिंदगी का हिसा है। हमारी भूखी जिंदगी के लिए जरूरी है।"


 रवि ने समझा कि इंसान अपनी जरूरत के लिए प्राकृतिक संतुलन को तोड़ रहा है।  लेकिन, जब रवि जंगल के अंदर गया, तो समझ आया कि इसे होने वाली तबाही इंसान के लिए भी नुक्सान दायक हो सकती है।  अगर जंगलों को जला दिया जाता है, तो अपने घर से बेघर हो जाते हैं और ज़मीन की उपयोजितता भी कम हो जाती है।


 कहानी 2: "जंगल की आग और प्राकृतिक असर"


 मीरा एक वैज्ञानिक थी जो प्रकृति और प्रकृति के रखवाले के रूप में काम करती थी।  एक दिन, उसने एक रिसर्च पेपर पढ़ा जिसमें बताया गया था कि जंगल में लगने वाली आग से सिर्फ महल को ही नुक्सान नहीं होता, बल्कि इससे हवा की गति, मौसम और जलवायु पर भी असर पड़ता है।  मीरा ने अपने साथियों के साथ मिलकर इस बारे में चर्चा की और समझा कि जंगलों को जलाने के लिए काफी बड़े करण हैं, जो महसूस नहीं होते.



 जंगलों की आग को अक्सर किसान और लकीर के फकीर अपनी जमीन की सफाई और खेती के लिए लगाते हैं।  लेकिन इस मामले पर बहुत भारी असर पड़ता है।  ये आग हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का लेवल बढ़ाती है, जो जलवायु को और भी गरम करता है।  ऐसे में, जो प्राकृतिक संतुलन था, वो टूट जाता है और नए असर होते हैं।


 मीरा समझती थी कि जंगलों को जलाने का प्रबंध किसी समाधान तक पहुंचना चाहिए।  उसने इस विषय पर काफ़ी शोध किया है और कुछ टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों की तलाश की है।  उसने एक बेहतरी तारीख दीया जिसमें किसानों को अपनी खेती के लिए सफाई दी गई और जमीन को उपयोगी बनाए रखने के लिए दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करने का मौका मिला।


 जंगलों को जलाने के कई कारण हैं, जो इंसानियत की छोटी सोच और जरूरत से जुदा है।  परंतु अगर हम इनके असर को प्रकृति की सुरक्षा के बारे में समझते हैं, तो हम सभी के लिए एक बेहतर और टिकाऊ भविष्य बना सकते हैं।

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