સખત મહેનત છતાં નોકરી કે કામ ન મળવું:
मेहनत क फल जरूर मिलता है" — यह कहावत हम बचपन से सुनते आए हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति पूरी ईमानदारी, लगन और परिश्रम से पढ़ाई करता है या काम की खोज में लगातार संघर्ष करता है, फिर भी उसे नौकरी या काम नहीं मिलता, तब यह कहावत एक सवाल बन जाती है। यह स्थिति न केवल व्यक्ति को मानसिक रूप से तोड़ती है, बल्कि परिवार, समाज और देश के लिए भी चिंता का विषय बन जाती है
1. बेरोजगारी की बढ़ती दर
हर साल लाखों युवा स्कूल और कॉलेज से स्नातक होते हैं, लेकिन उनके लिए रोजगार के अवसर सीमित होते हैं। सरकारी नौकरियों की संख्या कम होती जा रही है और प्राइवेट कंपनियों में चयन की प्रक्रिया कठोर होती जा रही है। इससे मेहनती छात्र भी पीछे रह जाते हैं।
2. अव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली
हमारी शिक्षा प्रणाली आज भी अधिकतर थ्योरी आधारित है। विद्यार्थियों को स्किल्स की जगह नंबर लाने पर जोर दिया जाता है। ऐसे में जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाते हैं, तो उनके पास वास्तविक काम का अनुभव नहीं होता।
3. भेदभाव और सिफारिश
कई बार योग्य उम्मीदवारों को सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं मिलती क्योंकि उनके पास कोई सिफारिश नहीं होती या वे किसी ‘नेटवर्क’ का हिस्सा नहीं होते। वहीं, कम योग्य लेकिन पहुंच रखने वाले लोग चुन लिए जाते हैं।
4. स्थान और संसाधनों की असमानता
ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में रहने वाले मेहनती युवाओं को सही मार्गदर्शन, इंटरनेट, ट्रेनिंग सेंटर और अवसर नहीं मिल पाते। इससे वे शहरों के युवाओं की तुलना में पीछे रह जाते हैं।
5. अर्थव्यवस्था की स्थिति
जब देश की अर्थव्यवस्था संकट में होती है या मंदी आती है, तो कंपनियां नई भर्तियाँ कम कर देती हैं। कई योग्य लोग खाली बैठ जाते हैं क्योंकि कंपनियों की प्राथमिकता लागत घटाना बन जाती है।
1. मानसिक तनाव
जब मेहनत के बावजूद सफलता नहीं मिलती, तो व्यक्ति खुद पर शक करने लगता है। वह अवसाद (डिप्रेशन), चिंता और आत्मग्लानि का शिकार हो सकता है। कई मामलों में आत्महत्या जैसी घटनाएं भी देखने को मिलती हैं।
2. परिवार पर दबाव
घर के माता-पिता उम्मीद करते हैं कि बेटा-बेटी पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करेंगे। लेकिन जब मेहनत का फल नहीं मिलता, तो यह सपना टूटता है और घर में निराशा और तनाव बढ़ जाता है।
3. समाज में हीन भावना
बेरोजगार युवा समाज में खुद को कमतर महसूस करने लगते हैं। वे सामाजिक मेलजोल से कतराते हैं और खुद को अलग-थलग कर लेते हैं।
4. अपराध और नकारात्मकता
कुछ लोग निराशा में गलत रास्ता पकड़ लेते हैं — नशे की लत, छोटे-मोटे अपराध या ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसे कामों में लग जाते हैं। इससे समाज का ताना-बाना भी कमजोर होता है।
1. कौशल आधारित शिक्षा
सरकार और शिक्षा संस्थानों को मिलकर ऐसे पाठ्यक्रम बनाने चाहिए जो बच्चों को व्यावहारिक कौशल (जैसे डिजिटल मार्केटिंग, प्रोग्रामिंग, इलेक्ट्रिकल वर्क, इत्यादि) सिखाएं, ताकि वे खुद का रोजगार शुरू कर सकें।
2. स्टार्टअप को प्रोत्साहन
सरकार को युवाओं को स्वरोजगार (self-employment) के लिए प्रेरित करना चाहिए। उन्हें कम ब्याज पर लोन, ट्रेनिंग और मार्केटिंग सहायता दी जाए, ताकि वे खुद रोजगार देने वाले बन सकें।
3. कैरियर काउंसलिंग और मार्गदर्शन
हर स्कूल-कॉलेज में कैरियर गाइडेंस सेल होना चाहिए जो बच्चों को सही दिशा दे सके — कब क्या करना है, किस क्षेत्र में क्या अवसर हैं, और कहाँ अप्लाई करना है।
4. रोजगार पोर्टल और अवसरों की जानकारी
सरकारी और निजी क्षेत्रों को मिलकर एक मजबूत डिजिटल सिस्टम बनाना चाहिए जहाँ हर युवक को उसकी योग्यता के अनुसार नौकरी की जानकारी, आवेदन की सुविधा और ट्रैकिंग मिल सके।
5. मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान
बेरोजगार युवाओं के लिए काउंसलिंग, मोटिवेशनल सेशन और वेलनेस प्रोग्राम चलाने चाहिए ताकि वे मानसिक रूप से टूटे नहीं और सकारात्मक बने रहें।
यह मानना गलत होगा कि मेहनत का फल नहीं मिलता। असल में, कभी-कभी वह फल देर से मिलता है या किसी और रूप में आता है। मेहनत करने वाला व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर कुछ न कुछ सीखता जरूर है। लेकिन यह भी जरूरी है कि हमारी व्यवस्था, समाज और सरकार मेहनत करने वालों का साथ दें — उन्हें मौके दें, उनकी मेहनत को मंच दें और उन्हें निराश होने से बचाएं। आज जरूरत इस बात की है कि हम शिक्षा, रोजगार और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस बदलाव लाएं ताकि कोई भी मेहनती हाथ खाली न रह जाए।
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