amerika dvaara bhaarateey vastu par 26% tairiph. अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 26% टैरिफ

 अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तु पर 26% टैरिफ


 हाल ही में अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 26% टैरिफ (प्रतिशुल्क) लगाने का निर्णय लिया है, जो दोनों देशों की व्यावसायिक साझेदारी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।  यह टैरिफ मुख्यतः उन लैपटॉप पर लागू किया गया है जो अमेरिका में बड़े पैमाने पर बेचे जाते हैं, जैसे कि स्टील, एल्युमिनियम, कपड़ा और कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण।  इस फैसले के पीछे अमेरिका की 'प्रोप्रोक्शनिस्ट' नीति मानी जा रही है, जिसका उद्देश्य उद्यमिता को विदेशी बाजार से बचाना है।



 भारत और अमेरिका के बीच व्यापार हमेशा से ही दोनों   कीl अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा रहा है।  भारत, अमेरिका का एक प्रमुख व्यापारिक साझीदार है और भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में बड़ी मात्रा में सामान बेचता है।  ऐसे में 26% की भारतीय पार्टियाँ महंगी हो गईं, जिससे उनकी क्षमता घटेगी और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


 इस कदम से भारतीय उपकरण, छोटे और मध्यम स्तर के प्रतिभागियों को सबसे अधिक नुकसान होगा।  उच्च श्रेणी के कारण अमेरिकी नामांकित नामांकन विकल्प की तलाश कर सकते हैं, जिससे भारत के संयुक्त राज्य अमेरिका में गिरावट की संभावना है।  इसके अलावा, इससे अमेरिका के आर्किटेक्चर को भी नुकसान हो सकता है क्योंकि उन्हें भारतीय उत्पाद पहले से अधिक कीमत पर मिलेंगे।



 भारत सरकार इस विषय पर अमेरिका से बातचीत कर रही है ताकि इस टैरिफ को कम किया जा सके या हटाया जा सके।  विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी यह मामला उठ सकता है क्योंकि तीन उच्च स्तर के अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्तर के खिलाफ माना जा सकता है।


 यदि यह टैरिफ लंबे समय तक बना रहता है, तो भारत को अपने सहयोगियों के लिए वैकल्पिक व्यवसाय की तलाश करनी होगी और घरेलू उत्पाद को अन्य देशों की ओर ले जाना पड़ सकता है।  साथ ही, यह घटना दोनों देशों के बीच व्यावसायिक बिक्री की स्थिरता को भी चुनौती दे सकती है।


 इस प्रकार, अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 26% टैरिफ केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक प्रतीकात्मक संकेत भी है, जो वैश्विक व्यापार की दिशा को प्रभावित कर सकता है।  आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि भारत और अमेरिका इस मुद्दे को किस प्रकार से सुलझाते हैं।

अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तु पर 26% टैरिफ



 हाल ही में अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 26% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यावसायिक बिक्री में नई चुनौती पैदा हो गई है। यह टैरिफ मुख्यतः स्टील, एल्युमिनियम, वस्त्र, औषधि, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे कि ऑर्थोपेडिक पर लागू होगा। अमेरिका का तर्क है कि इस कदम से वह अपने घरेलू उद्यमों को संरक्षण देना चाहता है, लेकिन इससे भारतीय सहयोगियों को भारी नुकसान हो सकता है।


 भारत, जो अमेरिका का एक प्रमुख व्यावसायिक साझेदार है, हर साल अरबों डॉलर का सामान अमेरिका में शामिल होता है। 26% टैरिफ से इन स्टोरेज की लागत बढ़ेगी, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी मांग कम हो सकती है। इससे सबसे अधिक प्रभावित छोटे और मध्यम स्तर के भारतीय व्यापारी, पोर्टफोलियो अमेरिकी उद्योग पर अधिक होते हैं।


 भारत सरकार ने चिंता व्यक्त करते हुए इस फैसले को लागू कर दिया है और देशों के बीच बातचीत की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। भारत इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी उठा सकता है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्तर के विपरीत माना जा सकता है।


 सिद्धांतों का मानना है कि यदि यह टैरिफ लंबे समय तक लागू होता है, तो भारत को वैकल्पिक उद्यम की ओर रुख करना होगा। इससे भारत की वैश्विक व्यापार रणनीति में भी बदलाव आ सकते हैं। साथ ही, अमेरिका में भी भारतीय उत्पादों की संख्या 30,000 है, जिसमें उनकी संख्या शामिल है।


 यह त्रैमासिक न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से, बल्कि माइक्रोस्कोपिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण घटना है। यह निर्णय वैश्विक व्यापार में राष्ट्रवादी समुदायों की बहुसंख्यक रुचियों को शामिल किया गया है। भारत और अमेरिका जैसे दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे इस मुद्दे का समाधान पारस्परिक संवाद और सहयोग से करें, ताकि दोनों देशों की व्यावसायिक और साझेदारी को कोई नुकसान न हो।


 कुल मिलाकर, यह स्थिति आने वाले समय में भारत की राजनीतिक नीति, अमेरिका के ऐतिहासिक रुझान और वैश्विक व्यापार व्यवस्था के भविष्य को प्रभावित कर सकती है।

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